Connect with us

India

लॉकडाउन: 10 दिन तक पैदल चलकर 400 किमी का सफ़र किया तय, फिर भी नहीं पहुंच पाए घर

Published

on

feefef

भारत में कोरोना संकट की सबसे बड़ी मार प्रवासी मज़दूर झेल रहे हैं. 21 दिन के लॉकडाउन ने उन्हें तोड़ कर रख दिया है. ये वो मज़दूर हैं, जो अपने घर-गांव से दूर दूसरे शहरों में दिहाड़ी पर ज़िंदगी गुज़ार रहे थे. लेकिन अब न ही इनके पास रोज़गार है और न ही हाथ में बचत. ऐसे में वापस लौटने को मजबूर हैं. मगर इनकी बेबसी का आलम तो देखिए, ये वो भी नहीं कर पा रहे.

97cec809 faf2 4aa6 b45d 3dd95682d1c3

Source: timesofindia

देश के हज़ारों मज़दूरों की तरह महाराष्ट्र में भी ऐसे ही क़रीब 3,000 प्रवासी हैं, जिन्होंने अपने घर लौटने की सोची थी. लेकिन 10 दिन तक पैदल चलने और 400 किमी का सफ़र करने के बावजूद ये ऐसा न कर सके.

बता दें, ये मज़दूर विरार में एक कंस्ट्रक्शन साइट में काम करते हैं. बॉर्डर सील होने के कारण कुछ मज़ूदूर महाराष्ट्र के आख़िरी गांव के पास तालासरी तालुक़ में बने अस्थायी शेल्टर में रहे तो कुछ जंगल के रास्ते गुजरात जाने को निकल पड़े थे.

10 दिन तक पैदल चलते हुए प्रवासी मजदूरों ने किसी तरह 400 किमी का सफर किया. जंगलों और कंटीले रास्तों को पार करते हुए ये मज़ूदर महाराष्ट्र और गुजरात बॉर्डर पर पहुंचे. उन्हें उम्मीद थी कि ये थकावट भरा सफ़र उन्हें एक आरमदायक मंज़िल पर पहुंचाएगा. मगर मुफ़लिसी में जीने को मजबूर इन लोगों के क़िस्मत में आराम जैसे लिखा ही न हो.

d7449574 4068 46d1 9310 9b7a457f8f38

Source: bangkokpost

दोनों राज्यों की सीमा बंद थी, इन्हें आगे नहीं जाने को मिला. ऐसे में ये वापस वहीं लौटने को मजबूर हैं, जहां से उन्होंने सफ़र शुरू किया था.

 

Timesofindia की रिपोर्ट के मुताबिक़, एक कंस्ट्रक्शन मजदूर राजेश दवक ने बताया कि वो अपनी पत्नी और दो साल के बच्चे और 20 अन्य मज़दूरों के साथ निकले थे. कई रातें उन्होंने जंगल में गुज़ारीं तब जाकर वो गुजरात पहुंचे लेकिन सूरत में पुलिस ने उन्हें एक ट्रक में बैठाकर वापस महाराष्ट्र सीमा पर छोड़ दिया.

राजेश ने बताया कि उनका गांव भोपाल में पड़ता है. उन्होंने जंगल से होते हुए गुजरात जाने का तय किया था. छह दिन का सफ़र कर वो किसी तरह तालासरी पहुंचे.

‘सीमा बंद थी तो हम जंगल के रास्ते जाने लगे.’

a4047545 fed9 4562 88a4 ba88f1b113eb

Source: newindianexpress

एक मज़दूर हरीक दवक ने कहा, ‘हम लोगों के पास 10 फ़ोन थे, जिनमें से केवल एक ही को ऑन रखा जाता था. ताकि रास्ता ढूंढ सकें और ज़रुरत पड़ने पर कॉल कर सकें. फ़ोन की टॉर्च से हम जंगल में किसी तरह देख पाते थे. इसी तरह हम वहां जंगली जानवरों से भी बचे रहे.’

ये लोग जंगल में ही लकड़ी काटकर जलाते थे, और अपने लिए खाना तैयार करते थे. समूह में शामिल महिलाओं ने बताया कि उन्हें शुरू के दो दिन तो डर लगा लेकिन फिर जंगल में रहने का डर ख़त्म हो गया.

हालांकि, इतनी तकलीफ़े उठाना भी इन मज़दूरों को राहत न दे सका. राजेश ने कहा कि वे सूरत पहुंच चुके थे, आगे भी जा सकते थे. लेकिन उन्हें तालासारी छोड़ दिया गया. ऐसे में हमने वापस लौटने का फ़ैसला किया.

Continue Reading
Advertisement
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *